Sunday, 26 November 2017

प्रेम-गीत

जो पिघल जाए पत्थर कोई,
इन आँखों में कुछ बात है,
हौले से आ जाओ बाहों में,
यह घनिष्ठ बरसात की रात है।

बह रही प्रचंड हवा,
चेहरे पर घने काले बाल हैं,
अनजान हैं हम एक-दूसरे से,
बस यही दिल में एक मलाल है।

इस सौंदर्य की क्या व्याख्या करें,
जिसके लिए शब्दकोश भी खाली है,
गुलाब की शोभा फीकी लगे,
खिले जब तुम्हारे मुस्कान की लाली है।

कानों में रास घोलती,
मेघ-मल्हार सी वाणी है,
शाख पर बैठी,  टुक-टुक सुनती,
कोयल भी तुम्हारी दीवानी है।

जिस कागज़ पर कभी कुछ न लिखा,
उस पर आज यह कलम भी तुम्हारी अनुरागी है,
प्रेम-गीत है लिख डाला,
आज इस चित्त में प्रेम-ज्योत जो जागी है।

Wednesday, 6 January 2016

माँ, तेरी बहुत याद आती है

माँ, तेरी बहुत याद आती है,
यह वक्त की फरमाईश और मीलों की दूरियाँ अब सहन नहीं हो पाती है,
माँ, तेरी बहुत याद आती है ।

रात को जब नींद नहीं आती,
तब तेरे लोरी सुनाने की गूँज आती है,
आँखे बंद कर लूँ जो,
तो तेरे मेरे बालों के सहलाने की याद आती है ।

रात को जब चाहे सो जाऊँ,
कोई रोकने वाला नहीं है,
पर सुबह देर से उठूँ जो,
तो कोई टोकने वाला भी नहीं है ।

आज गल्तियाँ सौ करूँ,
कोई ड़ाँटने के लिए नहीं होता,
कोई दुख भी हो जो मुझे,
तुझ जैसा कोई बाँटने के लिए नहीं होता ।

अपने बच्चे का हाल जानने के लिए रोज़ फोन करती है,
मेरे जवाब पाने का पल-पल इंतज़ार करती है,
कभी-कभी मैं फोन उठा नहीं पाता,
कभी-कभी उठाकर कह देता हूँ कि बात नहीं कर सकता ।

यह सुनकर,
मन ही मन उदास होती है,
चुप-चाप से बात करना छोड देती है,
ज़िंदगी पता नहीं क्यों इतनी उलझ जाती है,
और हम समझते हैं कि माँ सब समझ जाती है ।

कभी मैं ढ़ंग से कुछ खा न पाऊँ,
तो खुद भी भूखी सो जाती है,
सच कहूँ तो यह सोच-सोच कर मेरी आँखे भर आती हैं,
माँ, तेरी बहुत याद आती है,
माँ, तेरी बहुत याद आती है ।

Saturday, 18 April 2015

बेसहारा ज़िंदगी

सडक किनारे, खून से लथपथ,
लाश नहीं, वो ज़िंदा है।

सिसकती, चिल्लाती, आंसू बहाती, आवाज़ लगाती,
न जाने किस-किस को गुहार लगाती।

सब गुज़रते, नज़र उठाते,
अंदेखा करके आगे बढ जाते।

वह सवाल करती खुदको,
लोग बहरे क्यों हो गए हैं,
सब देखकर भी यूँ अंधे क्यों हो गए हैं।

पर सवाल तो हज़ारों हैं, बस जवाबों की कमी है,
चेहरे पर भय है, आँखों में नमी है।

बस अब कुछ वक्त की ही बात है,
पर उम्मीद अभी भी कायम है,
कि कोई दरियादिली दिखाएगा,
कि कोई पत्थर का हृदय पिघल जाएगा।

वह वहीं पडी है, मदद की आस लगाती है,
हर एक लहू की बूँद के साथ, मृत्यु की गाडी और पास आती है।

अपनी आँखे बंद करती है,
किसी को याद करती है,
न जाने है कौन वो,
जिससे इस आखिरी वक्त में भी आस बंधी पडी है।

जो भी है,
पर शायद वह इन सबसे अनजान है,
कहीं दूर कार्यरत है,
शायद चीख उसकी नहीं सुन पाएगा,
नामुमकिन ही है कि वह उसे बचाने आएगा।

शायद यह उसकी ज़िंदगी की आखिरी कोशिश है,
जिसे दोहराने का मौका भी न मिल पाएगा।

आसपास के दृश्य में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया,
लोग चलते गए, कारवाँ बनता गया,
साँस थमती गयी, ज़िंदगी निकलती गयी।

Sunday, 23 March 2014

एक मुलाकात

आज न जाने यूँ कुछ बात हो गई,
चलते-चलते फिर उनसे मुलाकात हो गई।

कहीं दूर से चलकर वो आए जा रहे थे,
यहाँ हम भी बेतहाशा कदम बढ़ाए जा रहे थे।

कुछ ही वक्त में उनकी नज़रें हम से मिली,
चेहरे पर उनके एक भीनी मुस्कुराहट सी खिली।
हम तो पहले से ही अपना चैन खोए थे,
उनके ख्यालों में ढूबे खुद कल रात से ही नहीं सोए थे।

आज वही सपनों से निकलकर सामने खड़ी थी,
इसलिए हमारी उत्सुकता भी बढ़ी थी।

आकर यूँ उन्होंने जो बातें शुरू की हमसे,
उनकी आवाज़ की तरगो में झूल गए,
सुनते रहे बस उनको ही बेझिझक,
और खुद जो कहना था वह कम्बक्त भूल गए।

वह कहती रही, हम सुनते रहे,
और शाम ढ़लने को आई।
काफी देर बात करने के बाद,
उन्होंने विदा लेने की इच्छा जताई।

बेमन से ही सही, पर उनकी बात मान ली हमने,
और मुस्कुराती हुई वह हमसे आगे चली गयी,
होश तो पहले ही गँवा चुके थे हम,
अपनी हंसी से अब घायल भी कर गयी।

आज एक चांद आसमान में था, और एक नज़र के सामने,
अपने लिए यह सबसे हसीन रात हो गई,
आज न जाने यूँ कुछ बात हो गई,
चलते-चलते फिर मुलाकात हो गई,
आज फिर मुलाकात हो गई।

Saturday, 12 October 2013

आज फिर तेरी तस्वीर देखी ।

आज फिर तेरी तस्वीर देखी,
न जाने क्यूँ तू मुझे अपनी सी लगी,
इतना वक्त दूर रहने के बाद,
तुझे पाने की आस एक बार फिर दिल में जगी ।

ऐसा लगा कि तू मुझसे कुछ कह रही है,
जैसे कोई नदिया सी बह रही है ।
और जब मैं तुझे सुनने की कोशिश करूँ,
तो फिर तेरी आवाज़ मुझे सुनाई नहीं दे रही है ।

पर शायद मेरा दिल कहता है,
तू मुझे बीते दिन याद करा रही है,
जाने-अनजाने में ही सही,
मुझे मेरी गल्ती का एहसास दिला रही है ।

वह गल्ती जिस कारण तू मुझसे दूर हुई,
जिससे मुझे अपने जीवन में तेरी ज़रूरत महसूस हुई ।

आज एक बात समझ में आई,
बहुत सरल है किसी का दिल दुखाना,
पर उससे कई अधिक मुश्किल है,
अपनी गल्ती कबूल कर उसे वापिस मनाना ।

और सच कहूँ मेरी जाना, तो इससे भी कई ज़्यादा कठिन है,
उसे अपने जीवन में दोबारा लाना,
और हमेशा-हमेशा के लिए,
अपनी ज़िंदगी का एक हिससा बनाना ।

अब तो तू शायद किसी और का ही
हाथ थामकर चली है,
पर मैं जानू तो केवल इतना,
कि मेरे लिए तो सिर्फ तू ही बनी है ।

इसलिए आज भी कभी,
तुझे दूर से देख मुस्कुरा दिया करता हूँ,
तेरी आँखो में झाँक शर्मा दिया करता हूँ,
ऐसे ही कभी तुझे किसी और के साथ देख,
खुद का ही दिल मैं जला दिया करता हूँ ।

Tuesday, 24 September 2013

तेरी याद आ गई |

कल बारिश में जो किसी मोर को देखा,
तो तेरी याद आ गई |
पंख फैलाकर जो वह मस्ती में झूमा,
तो तेरी याद आ गई |

बाग में दूर से एक गुलाब खिला हुआ दिखा,
पास जाकर सुगंध ली, तो तेरी याद आ गई |

कल अकेले में जो आँखे नम हुई मेरी,
एक-एक आँसू की बूँद को देखा, तो तेरी याद आ गई |

सूरज जो ढल रहा था आसमान में हौले-हौले,
उसकी लालिमा पर नज़र गई, तो तेरी याद आ गई |

कल नदिया किनारे एक छोटा सा बच्चा खेलता हुआ दिखा,
उसकी मुस्कुराहट पर नज़र गई, तो तेरी याद आ गई |

कल रात बिस्तर में एक मीठी सी निंदिया आई मुझे,
सपनों में जब किसी परी को देखा, तो तेरी याद आ गई |

मंदिर में जो पहुँचा भगवान से मन्नत माँगने,
पूजा की थाली देखी, तो तेरी याद आ गई |

आईने में जो निहार रहा था मैं खुद को यूँ,
अपनी आँखो में जब झाँक कर देखा, तो तेरी याद आ गई |

Saturday, 7 September 2013

क्यों नही ?

आँखों से तो तुम बहुत कुछ कह जाती हो,
होठों से न जाने कुछ बताती क्यों नही |

चाहती तो हो तुम हर-एक को खुश रखना,
न जाने खुद तुम कभी मुस्कुराती क्यों नही |

मन में न जाने कितना विशाल मोहब्बत का समुंदर छिपा कर रखा है,
फिर सामने आकर कभी प्रेम जताती क्यों नही |

अँधेरे में मुझे हमेशा रोशनी दिखाती आई हो,
दिल से दिल की ज्योत कभी जलाती क्यों नही |

मधुर आवाज़ है तुम्हारी कोयल के जैसी,
कभी प्यारा-सा कोई गीत गुणगुणाती क्यों नही |

रो-रोकर अपने गले को बहुत सुखा दिया है तुमने,
अमृत का एक घूंट पीकर अपनी प्यास बुझाती क्यों नही |

सपनों में न जाने कितने ही वादे कर जाती हो,
असल ज़िंदगी में साथ रहने का भरोसा कभी दिलाती क्यों नही |

जानता हूँ मैं कि उदास हो तुम मुझे यूँ तन्हा देखकर,
फिर न जाने अपने बीच की यह दूरियाँ कभी मिटाती क्यों नही |

देखती हो तुम दूर से आँखों में टुकुर-टुकुर ऐसे,
कभी पल-दो-पल के लिए पास आती क्यों नही,
पास आती क्यों नही |